सोमवार, 15 अगस्त 2022

लोक देवता और समता मूलक समाज के प्रणेता- श्री गणिनाथ जी ।



                                लोक देवता और समता मूलक समाज के प्रणेता- श्री गणिनाथ जी ।

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विभिन्न ज्ञानी , विद्वतजनों एव लोकगीतों के माध्यम से बाबा गणिनाथ जी के जीवन चरित्र का दर्शन होता है। जैसा विदित है बाबा का पदार्पण भूलोक पर बिहार के वैशाली ज़िला मे बौद्ध कालिन के अस्ताचल और विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं का भारत मे आगमन हो चुका था। बंगाल आदि प्रदेशो में मुस्लिम शासकों का शासन काल चल रहा था।

संत परम्परा के कड़ियों में इतिहासकारों ने इस महान दिव्य आत्मा को स्थान नहीं दिया है परंतु उनकी मानवता की सेवा का उल्लेख लाखों लाख़ अनुयायियों की लोकगीतों के माध्यम से जुबान पर है। उच्च कोटि के संत परम्परा के अनुकूल जाति, धर्म से परे उठकर मानवता , समतामूलक समाज के सृजन को जन मानस में प्रोत्साहित किया। दया, क्षमा , त्याग के प्रतिमूर्ति मानवीय अवगुणों लोभ - लालच, क्रोध, द्वेष से सदैव दूर रह कर आमजन के मध्य आदर्श प्रस्तुत किया है। आपकों विदित है की पलवैया के राजा होने के बावजूद गृहस्थ जीवन और संत परम्परा का अक्षरतः पालन किया है।

भारत के प्राचीन ऋषि गुरुकूल परम्परा को जीवन्त रखते हुए पलवैया को उच्चकोटि के शिक्षा का केन्द्र स्थपित किया था जिसमें धर्मशास्त्रों, ज्योतिष, खगोलीय, औषधिय, ध्यान- योग, वेद, तंत्र मंत्र आदि शिक्षा का समुचित जानकारी मिलता है। आपका सम्पूर्ण परिवार गुरु सिख परंपरा से संबद्ध रहा है जिसमें आपके प्रथम पुत्र गोविन्द जी महाराज के अनुयायी, पत्नी माता खेमा सती के पूजक सति और दोनो पुत्रियों बंदी और बौधा बाबा को कूल देवता या देवी के रूप मे पूजक सर्व जातीय समाज में मिलते हैं।

श्री गणिनाथ जी के चमत्कार की कई जीवंत कहानियां आज भी भक्तजनों से मिल जाता हैं। वैदिक धर्म के पक्षधर व पालक कूलगुरू जी महाराज ने समाज में व्याप्त गलतियों को सुधार करने के लिए *मांजन्य* व्यवस्था को लागू किया जो आज भी नेपाल के तराई क्षेत्र में देखने को मिलता है, उपनयन संस्कार की अनिवार्यता , मांस मदिरा , पशुओं के बंध्याकरण पर रोक आदि के साथ समाज में *मूल डीह* प्रचलन से आधुनिक काल के वैज्ञानिक सम गोत्रीय विवाह के दोष से बचाव किया था।

बाबा गणिनाथ गोविंद जी ने अपने भक्तों व अनुयायियों को पार्थिव- पिंड स्वरूप में पूजन का महत्व दिया जिसमे पाँच तत्वों के समिश्रण से साधक को नव ऊर्जा (ऊष्मा) का संचार होता है, स्थूल पिण्ड पूजन से घर परिवार में सदैव सुख शान्ति, बाहरी आपदा विपदा से रक्षा गुरु कृपा बनी रहती हैं, इस लोक में यश-कृपा, वैभव प्राप्त करने के साथ मृत्यु उपरांत जीवन मरण के चक्कर से मुक्ति पा जाते हैं। पलवैया धाम के पंडा गण प्रसाद स्वरूप पलवैया की मिट्टी अपने भक्तजनों को देते है जिसका भक्तजन अपने गोहबर मे स्थापित पिंड पर लेप चढ़ाते है और ललाट पर त्रिपुंड या टीका कर परमपूज्य संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ गोविंद का स्मरण करता है।

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