सन्त शिरोमणि बाबा सरजू दास जी मध्देशिया वैश्य अनाथाश्रम करजौली के संस्थापक एवं सामाजिक उत्थान के अग्रदूत | बीसवी सदी का पूर्वार्द्ध जब देश में स्वातंत्र्य आन्दोलनों की लहर चल रही थी उसी समय देश में अनेक महापुरुषों द्वारा सामाजिक उत्थान के अभियान भी चलाये जा रहे थे | ऐसे ही लोगो में अग्रगण्य थे, सन्त शिरोमणि बाबा सरजू दास, जिनकी कर्मठता एवं सफल प्रयासों का साक्षी है --- मध्यदेशीय वैश्य अनाथाश्रम करजौली (खुरहट), मऊ - उत्तर प्रदेश |
बाबा कपूर दास जी, बाबा दास एवं बाबा राम सुभग दास जैसे महान सन्तो को तपोस्थली कप्तानगंज, जनपद - आजमगढ़ के निवासी श्री सुदीन साव के सुपुत्र एवं श्री बाबु लाल साव के सुपुत्र के रूप में माता श्रीमती लखपति देवी की कोख से बाबा सरजुदास जी का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें, नौवे दशक के आस पास हुआ था | इनके बड़े भाई का नाम पडोही कांदु तथा बहन जो की उम्र में छोटी थी का नाम छविराजी देवी था , जिनका विवाह कोयलसा निवासी तम्बाकू व्यवसायी श्री पलटन साव के साथ हुआ था | आप आजीवन अविवाहित एवं ब्रह्मचारी रहे | अंतिम शिक्षा क बारे में सही जानकारी तो नहीं मिल सकी है, लेकिन पल्टू साहब की दुर्लभ वाणी का संग्रह और उसे बिल वेडियर प्रेस इलाहबाद में छ: खंडों में प्रकाशित करवाना उनके पूर्ण शिक्षित होने की पुष्टि के लिए पर्याप्त प्रमाण है |
बचपन से ही घुमकड़ प्रवृत्ति एवं साधू - सन्तो की सेवा और संगत ने उसमे जीवन से विरक्ति उत्पन्न कर दिया | सन्त शिरोमणि बाबा पल्टू साहब अखाड़ा अयोध्या से सम्बद्ध कप्तान गंज कुटी के सन्त बाबा कपूर दास के शिष्य बाबा बन्धु दास जी से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए | वह स्थान आज भी बाबा गोपदास कुटी कप्तान गंज आजमगढ़ के नाम से ख्याति प्राप्त है |
बाबा गोपीदास जी तथा उदासीन मुनी बाबा शारदा राम जी इनके बल सखा थे | जीवन से विरक्ति का जो बीज बचपन में अंकुरित हुआ था , शनै: शनै: बढता गया तथा एक दिन अपने मित्र सखाराम जी के साथ घर छोड़ कर वैरागी हो गए और काफी दिनों तक एक साथ तीर्थो और मंदिरों में घुमने क बाद दोनों लोगो ने अपनी अपनी दिशा बदल लिया | स्वयं बाबा सरजू दास जी ने सूर्य की प्रातः कालीन रश्मियों से आलोकित प्राची दिशा की राह पकड़ी और बिहार, उड़ीसा , बंगाल असम अदि राज्यों के कटक , कोलकता , दार्जलिंग, गोहाटी आदि नगरो की लम्बी यात्रा करने के बाद अंत में वापस आकर करजौली को अपनी साधना स्थली बनाया जबकि दुसरे मित्र बाबा शारदा राम जी ने अस्तांचल गामी सूर्य की शीतल किरणों से अवगाहित पश्चिम दिशा की रह पकड़ी और दिल्ली पंजाब गुजरात होते हुए पूना पहुंचकर अपने को एक सिद्ध सन्त और उदासीन मुनी के रूप में प्रतिष्टित किया |
अपनी यात्रा के दौरान बाबा सरजू दास जी ने देश क विभिन्न मार्गो में स्वजातीय कांदु वैश्य समाज के लोगो की दयनीय एवं चिंतनीय दीन हीन दशा को देखा , यधपि कि अपने उदात्त एवं उत्तम विचारो के कारण वह सभी जाती वर्ग के लोगो में समान रूप से ग्रह्य एवं पूज्य थे | फिर भी अपने मध्यदेशीय समाज क पिछड़ेपन , गरीबी अशिक्षा , बेरोज़गारी आदि से काफी चिंतित रहा करते थे |
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