सोमवार, 15 अगस्त 2022

*** श्री लाल ख़ाँ ****

                                                               

                                                               *** श्री लाल ख़ाँ ****

जब कभी भी महान कर्मयोगी , संत प्रवर , समाज -सुधारक, महात्मा बाबा गणिनाथ जी अथवा गोविन्द जी महाराज की चर्चा होती है तो लाल खाँ का उल्लेख अवश्य मिलता है । सन्तों का जीवन समस्त जीवों , मानव कल्याण एव मानवता के लिए समर्पित होता है तथा ये जाति , सम्प्रदाय के बन्धनों से ऊपर उठकर होते है । महात्मा श्री गणिनाथ जी -गोविन्द जी के कथावृति से कर्मण्य लोकनायक , दार्शनिक , विचारक , समतामूलक समाज के समर्थक , योग एव औषधीय ज्ञान के मर्मज्ञ ज्ञाता थे । आज भी समाज में बाबा गणिनाथ जी -गोविन्द जी को कूल देवता और कूल गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है और पूजे जाते है ।

बाबा गणिनाथ जी द्वारा स्थापित " धर्मपुर राज्य पलवैया " की धन -धान्य , वैभव , सुख शांति और समिर्द्धि की चर्चा चारो तरफ थी । धर्मपुर राज्य पलवैया पर अगल बगल के जागीरदारों में ललचाई कुदृष्टि पड़ गयी थी । बाबा गणिनाथ जी वृद्ध हो चुके थे तथा साधू -सन्त स्वभाव वश ये दुष्ट लोग पलवैया को कमजोर राज्य समझ बैठे थे । ये लोग पलवैया को समूल नष्ट कर देना चाहते थे । इसमें से लाल ख़ाँ , किश्ती खाँ , बक्कर खाँ , सुल्तान खाँ आदि यवनो जगिरदारो -सेनापतियों ने पलवैया राज्य पर आक्रमण कर दिया ।

शान्ति , प्रेम अहिंसा का सदैव पाठ पढानेवाले बाल ब्रह्मचारी श्री गोविन्द जी महाराज ने पलवैया के शांतिप्रिय नागरिको को धर्म और राष्ट्र की रक्छा के लिए शस्त्र उठाने के लिए ललकारा , उनकी ओजस्वी धर्म शिक्छा या उपदेश से जनता मरने मारने पर तैयार हो गयी । इस युद्ध को गोविन्द जी ने " धर्मयुद्ध " का नाम दिया । कुछ लोगो को गढ़ (किला) के अंदर रक्छा के लिए छोड़ दिया और शेष को श्रीधर जी , रायचंद्र जी के साथ स्वयं के नेतृत्व में यवनो से लोहा लेने के लिए युद्ध छेत्र के लिए प्रस्थान किये ।आज भी गढ़ बाहर और गढ़ भीतर की चर्चा होती है ।

यवनों का नेतृत्व लाल खाँ नामक अधिनायक कर रहा था , वह बड़ा ही शूरवीर और लड़ाकू था । श्री गोविन्द जी के साथ भयंकर युद्ध होता है जिसमे मलेच्छ यवन बुरी तरह से परास्त होते है , अधिसंख्य मृत्यु को प्राप्त करते है । साथ ही उनका मुख्य सेनापति लाल खाँ बहादुरी से लड़ता है और अन्तः गम्भीर घायलावस्था में गिरफ्तार कर लिया जाता है । इस युद्ध में गोविन्द जी महाराज भी घायल हो जाते है तो अनुचर मृदुल ठंडा जल पीने को लेकर आते है ।परन्तु बगल में कराहता शत्रु लाल खाँ अत्यधिक घायल अवस्था में पानी मांग रहा है उसे देने को बोलते है । पानी पाकर लाल खाँ में दया और कृतज्ञता का भाव उत्पन्न होता है । गोविन्द जी महाराज अपनी सेवा सुश्रुषा से उसे भला चंगा भी कर देते है । 

लाल खाँ इस प्रेम , मानवीय सेवा से अभिभूत हो जाता है और उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है । बाबा गणिनाथ जी के चरणों में गिरकर जीवनदान माँगता है । बाबा गणिनाथ जी दयालुता और छमा का आदर्श रखते हुए माफ़ कर देते है और शिष्य बना लेते है तथा अपने मुख्य द्वार का पहरेदार नियुक्त कर देते हैं । बाबा अपने अनुचरों को आदेश देते है की जो भी मेरा भोजन होगा उसी में से लाल खाँ को प्रसाद के रूप में भोजन दिया जाएगा । जीवनपर्यन्त लाल खाँ ने बाबा की पूर्ण निष्ठां से सेवा किया । लाल खाँ एक हिन्दू मन्दिर की रक्छा करते हुए वीरगति को प्राप्त किया । यह हिन्दू मुस्लिम दोनों सम्प्रदायो के आपसी सौहार्द , मानवीय प्रेम और पूर्ण समर्पण का अप्रतिम उदाहरण है ।

आज भी जिस घर , मन्दिर में गणिनाथ - गोविन्द जी की पूजा होती है, वहाँ दयाराम , फेकू राम और लाल खान की पूजा अनिवार्य है ।दया राम और फेकू राम बाबा के परम् शिष्य के रूप मे अलग से पूजा की जाती हैं । वही पूजा घर या मन्दिर के बाहर लाल खाँ का भी चढ़ौना चढ़ाया जाता हैं । मांगलिक या शुभ कार्यो के अवसर पर जब अन्य देवी देवताओ की स्तुति की जाती है तो उस समय लाल खाँ से भी यज्ञ कार्य निर्विघ्न सम्पादित कराने हेतु प्रार्थना किया जाता हैं । पूजा के अवसर पर शुद्ध घी शक्कर से बना रोट चढ़ाया जाता है । श्री गणिनाथ जी - गोविन्द जी उच्च वर्ग , पिछड़ा वर्ग , हरिजन , खनाबदोष में कूल देवता के रूप में पूजे जाते है और सभी जगह लाल खाँ जी का उचित स्थान देखने को मिलता है ।
साथ ही साथ पलवैया धाम , राजेन्द्र नगर , पटना , घघा घाट , माड़ी पुर ,मुजफ्फरपुर , मगरदहि सम्मस्ती पुर , गया, नेपाल , दिल्ली आदि बाबा के मन्दिरो में लाल खाँ जी की पूजा देखने को मिलता है ।

NOTE-- लाल खाँ जी पर अंगिका , मगही , भोजपुरी , मैथली लोकगीतों में गीत मिलता है जिसे पूजन के समय माता बहने आज भी गाती है । श्री भोला नाथ मधुकर , डा सरोज प्रधान , अपनी वाणी , विभिन्न स्मारिका पुस्तको , गणींनाथ गोविन्द जी पत्रिका , उत्थान , गणिनाथ गोविन्द जी सम्वाद आदि पत्रिकाओ से साभार ।

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