शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

💐💐💐💐अभ्युदय गीत💐💐💐💐

महासभा का ध्वज है | इसका परिमाप 3 लम्बा एवं 2 चौड़ा है रंग केशरिया है तथा मध्य में उगता हुआ सूर्य अंकित है जो जागरण कर्मशीलता समर्पण बलिदान एवं परगति का प्रटिक है इसी कारण सभी शुभ अवसरों पर इसका उत्तोलन सामूहिक करते हैं तथा ध्वज गान गाते है। 
अर्थ - अभ्युदय मध्यदेशीय वैश्य (कंदु) समाज का अत्यंत प्रिय तथा शाश्वत सम्बन्ध स्थापित करने वाला ध्वज है यह समाज के समग्रः जन -मन का अतीव प्रिय ,परम दिव्य सुचिता का प्रतिक तथा नेसगिक शोभा की खानी है |
ये ध्वज हमारे जाति,समाज तथा देश-वासियों के सबसे प्रिय ,मूल्यवान एवं आंखोकी पुतलियो के सामान प्रकाशमान है |
यह ध्वज के प्रतेक फडकन से हमे शिक्षा मिलती है यह अज्ञानता से ज्ञान के प्रकाश में लाने का प्रयास करते है हमे स्वस्थ जीवनं की सिख देता है तथा हमारे अंत करण में प्रेम ,सदभावना ,सहिष्णुता तथा भ्रतिबकी मन्दाकिनी बहता है |
यह ध्वज समाज के अज्ञान के अंधकार को समाप्त करता है जन-जन में निहित वैमनस्य को नष्ट कर उसमे संगठन के भाव जगाता है यह हमारे जीवन में प्रकाश कि ऐसी नंदादीप जला देता है जो साश्वत प्रकाशित रहता है कभी बुझता नही है |
यह ध्वज समाज के समग्र शिशुओ ,बालो ,युवाओ ,प्रोढ़ एवं वृद्ध नर-नारीओ का परम साध्य है | यह युवाओ में शक्ति का केंद्र तथा वृद्धओ के प्रेरणा का स्रोत है |
यह ध्वज ,रात्रि में अनंत रश्मियों से प्रकाशित होने वाले ध्रुव तारे के सदृश्य , अचुन्न्य ,शाश्वत एवं स्थिर है| यह प्रकृति की उष:कालीन लालिमा को अभिव्यक्त कर प्रसानता की अभिव्यक्ति करता है | इस्म्के फडकन से रक्त पीट संबलित आभा निसृत होकर दिव्या एवं सुहावनी होती है |
"अम्युदय ध्वज" के प्रति अनंत लोगो की स्नेह एवं भक्ति इसके प्रति श्रध्दा एवं वालिदान का परिचायक है यह ध्वज जन जन के अंत :करण में स्नेह ,श्रध्दा संगठन एवं शक्ति बनकर वैभव की ओर अग्रसर होने व उत्प्रेरणा जगता है |

💐💐💐💐अभ्युदय गीत💐💐💐💐

सभी लोगों का प्यारा हमारा आज अभ्युदय
मधुर शुचि दिव्य सारा है आज अभ्युदय
हमारे देश का प्यारा
हमारा जाति का तारा
सभी लोगो से न्यारा है हमारा आज अभ्युदय
ये देता है ज्ञान की शिछा
बहाता प्रेम की गंगा हमारा आज अभ्युदय
ये करता स्वास्थ्य की रछा
अविधा फूट को हरता है
हमारा संगठन करता
है भरता ज्योति जीवन का हमारा आज अभ्युदय
है बच्चो को भी प्यार यह
है वर्धो का दुलारा यह
है जीवन जन युवको का आज अभ्युदय
हमारे - वर डाली
युवको वर व्रन्दा डाली
खिला मन बालकों का यह पुष्प हमारा आज अभ्युदय
निशा का अचल ध्रुव तारा
उषा का हास्य म्रदु प्यारा
ये प्राची का है अरुड़ोदय हमारा आज अभ्युदय
रजत समशुभ्र है भक्ति
केसरिया रंग युवा शक्ति
अरुण अनुराग की धारा हमारा आज अभ्युदय

🙏🙏 संत शिरोमणि बाबा सरजूदास जी 🙏🙏

सन्त शिरोमणि बाबा सरजू दास जी मध्देशिया वैश्य अनाथाश्रम करजौली के संस्थापक एवं सामाजिक उत्थान के अग्रदूत | बीसवी सदी का पूर्वार्द्ध जब देश में स्वातंत्र्य आन्दोलनों की लहर चल रही थी उसी समय देश में अनेक महापुरुषों द्वारा सामाजिक उत्थान के अभियान भी चलाये जा रहे थे | ऐसे ही लोगो में अग्रगण्य थे, सन्त शिरोमणि बाबा सरजू दास, जिनकी कर्मठता एवं सफल प्रयासों का साक्षी है --- मध्यदेशीय वैश्य अनाथाश्रम करजौली (खुरहट), मऊ - उत्तर प्रदेश |

बाबा कपूर दास जी, बाबा दास एवं बाबा राम सुभग दास जैसे महान सन्तो को तपोस्थली कप्तानगंज, जनपद - आजमगढ़ के निवासी श्री सुदीन साव के सुपुत्र एवं श्री बाबु लाल साव के सुपुत्र के रूप में माता श्रीमती लखपति देवी की कोख से बाबा सरजुदास जी का जन्म उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें, नौवे दशक के आस पास हुआ था | इनके बड़े भाई का नाम पडोही कांदु तथा बहन जो की उम्र में छोटी थी का नाम छविराजी देवी था , जिनका विवाह कोयलसा निवासी तम्बाकू व्यवसायी श्री पलटन साव के साथ हुआ था | आप आजीवन अविवाहित एवं ब्रह्मचारी रहे | अंतिम शिक्षा क बारे में सही जानकारी तो नहीं मिल सकी है, लेकिन पल्टू साहब की दुर्लभ वाणी का संग्रह और उसे बिल वेडियर प्रेस इलाहबाद में छ: खंडों में प्रकाशित करवाना उनके पूर्ण शिक्षित होने की पुष्टि के लिए पर्याप्त प्रमाण है |

बचपन से ही घुमकड़ प्रवृत्ति एवं साधू - सन्तो की सेवा और संगत ने उसमे जीवन से विरक्ति उत्पन्न कर दिया | सन्त शिरोमणि बाबा पल्टू साहब अखाड़ा अयोध्या से सम्बद्ध कप्तान गंज कुटी के सन्त बाबा कपूर दास के शिष्य बाबा बन्धु दास जी से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए | वह स्थान आज भी बाबा गोपदास कुटी कप्तान गंज आजमगढ़ के नाम से ख्याति प्राप्त है |

बाबा गोपीदास जी तथा उदासीन मुनी बाबा शारदा राम जी इनके बल सखा थे | जीवन से विरक्ति का जो बीज बचपन में अंकुरित हुआ था , शनै: शनै: बढता गया तथा एक दिन अपने मित्र सखाराम जी के साथ घर छोड़ कर वैरागी हो गए और काफी दिनों तक एक साथ तीर्थो और मंदिरों में घुमने क बाद दोनों लोगो ने अपनी अपनी दिशा बदल लिया | स्वयं बाबा सरजू दास जी ने सूर्य की प्रातः कालीन रश्मियों से आलोकित प्राची दिशा की राह पकड़ी और बिहार, उड़ीसा , बंगाल असम अदि राज्यों के कटक , कोलकता , दार्जलिंग, गोहाटी आदि नगरो की लम्बी यात्रा करने के बाद अंत में वापस आकर करजौली को अपनी साधना स्थली बनाया जबकि दुसरे मित्र बाबा शारदा राम जी ने अस्तांचल गामी सूर्य की शीतल किरणों से अवगाहित पश्चिम दिशा की रह पकड़ी और दिल्ली पंजाब गुजरात होते हुए पूना पहुंचकर अपने को एक सिद्ध सन्त और उदासीन मुनी के रूप में प्रतिष्टित किया |

अपनी यात्रा के दौरान बाबा सरजू दास जी ने देश क विभिन्न मार्गो में स्वजातीय कांदु वैश्य समाज के लोगो की दयनीय एवं चिंतनीय दीन हीन दशा को देखा , यधपि कि अपने उदात्त एवं उत्तम विचारो के कारण वह सभी जाती वर्ग के लोगो में समान रूप से ग्रह्य एवं पूज्य थे | फिर भी अपने मध्यदेशीय समाज क पिछड़ेपन , गरीबी अशिक्षा , बेरोज़गारी आदि से काफी चिंतित रहा करते थे |

सन 1925 दोहरीघाट, जनपद - मऊ (तब आज़मगढ़) में सम्पन्न अखिल भरतीय मध्यदेशीय वैश्य महासभा उत्तर प्रदेश के अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुरूप बाबा सरजू दास जी ने दिनांक 26 मार्च 1926 को मध्देशिया अनाथाश्रम करजौली की स्थापना किया, तथा दिनांक 18-01-1932 को उसका पंजीयन भी करा लिया | आश्रम को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वजातीय एवं स्थानीय लोगो के जन सहयोग से लगभग 100 एकड़ भूमि क्रय करके अपनी प्रबल एवं इच्छा शक्ति तथा सेवा भावना का परिचय दिया | आश्रम में एक विद्यालय के साथ ही कुटीर उधोगो की स्थापना की गई , यहाँ अपने कांदु समाज के लोगो साथ हर वर्ग जाति के बच्चो के पढने लिखने के साथ ही भोजन एवं आवास की नि:शुल्क व्यवस्था की गई | बाबा सरजू दास की सक्रियता एवं कर्मठता के कारण आश्रम की ख्याति अपने जिले व प्रदेश के साथ ही बिहार , बंगाल , उड़ीसा तथा असम आदि राज्यों तक फ़ैल गई |करजौली के अतिरिक्त लालगंज, कोपागंज, मऊ आदि स्थानों पर भी अपने आश्रमो की स्थापना की | करजौली की भूमि पर एक भव्य मंदिर , विद्यालय भवन तथा छात्रावास का निर्माण की कल्पना को साकार रूप देने के लिए वे घूम - घूम कर संग्रह कर रहे थे कि अचानक अक्टूबर सन 1943 को उनका अज्ञात परिस्थितियों में परिनिर्वाण हो गया , बाद में अनाथाश्रम की देख रेख का दायित्व ग्राम सेवक दास तथा बिहारी दास ने संभाला , लेकिन योग्य उत्तराधिकारी के अभाव में अनाथाश्रम की भूमि असुरक्षित हो गई और समाजिक उत्थान का स्वप्न भी अधुरा रह गया | बाबा सरजू दास जी एक उच्च कोटि के सन्त भी रहे, इनके शिष्यों की लम्बी श्रृंखला मऊ, गाजीपुर जिलों के साथ दूर तक फैली हुई है जिनमे से अधिकाश आज भी आषाढ़ पूर्णिमा के दिन करजौली पहुँच कर अपनी कामना पूरी करते हैं | हमारा मध्यदेशीय कान्दू वैश्य समाज बाबा सरजू दास के द्वरा समाज हित में किये गए अप्रितम कार्यों एवं अध्यात्मिक चेतना का सदेव ऋण रहेगा |

🙏🙏 बाबा गणिनाथ महाराज जी की आरती 🙏🙏


ओम जय गणीनाथ देवा, ओम जय गणीनाथ देवा ||
पलटू गोविन्द ऋषि मुनि, ध्यावत गुरुदेवा ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

वेद ज्ञान के रवि तुम, ब्रहा ब्रहारसी द्रष्टा |
हम करते तेरो अर्चन, पावन युग स्त्रष्टा ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

कासायाम्बर अंगन, गल रुद्राक्ष साजै |
मस्तक तिलक सुशोभित, त्रिभुवन छवि छाजै ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

युगावतारी मनीषी, पलवईया वासी |
संत जनन गावै आरती, जय जय अविनाशी ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

सद्गुरु देव दयानिधि, मनसा शिवानंदन |
करुणा सागर तुम हो, करते पदवंदन ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

प्रेम की गंग बहाते, लहरे धर्मध्वजा |
सभी लोग अनुपम हो, तुम आजानू भुजा ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

संत शिरोमणी सद्गुरु, कृपादष्टि कर दो |
मानस मल को हरके, विमल भक्ति भर दो ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

धूप दीप श्रद्धा की, पान फूल मेवा |
भाव क भोग लगाऊ, जय सद्गुरु देवा ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

प्रेम कीजोत जलाकर, जो आरती गावै |
कहत 'दास' सुख सम्पति, मनवान्छित पावै ||
ओम जय गणीनाथ देवा .....

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

🌸 *श्री गोविन्द अभ्युदय*🌸

                                               *** ऊँ गनिनाथाय नमः ऊँ गोविन्दाय नमः ***

                                                         🌸 *श्री गोविन्द अभ्युदय*🌸


 

द्वापर युग में पृथ्वी पर जब अत्याचार और अन्याय के साथ पाप अपनी चरम सीमा पर था तो इसके विनाश के लिए भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आज ही के दिन भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी के मध्य काल मे अवतरण लिया था।

 हमारे घर परिवार में आज ही के दिन जन्माष्टमी को बाबु गोविन्द जी महाराज का जन्मदिवस या अवतरण दिवस पीढ़ियों से मनाते आ रहे है । हमारे पूर्वजोनुसार श्री गणिनाथ जी के प्रथम् पुत्र गोविन्द जी महाराज आज ही के दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। श्री गोविन्द जी महाराज विष्णु अवतारी थे । लोक गीतों में माता खेमा (क्षमा) सती के प्रसव वेदना का जिक्र मिलता है । दासी शेलखी माता खेमा सती (क्षमा सती) की सबसे मुंहबोली - प्रिय दासी है। माता खेमा सती के प्रसव की सूचना और चर्चा पलवाइया नगर में घर घर है। 

जब से माता खेमा सती गर्भवती हुईं हैं उनके शरीर से एक तेज पुंज और खुशबू निकलने लगता है , चेहरे की आभा पूनम के चांद के तरह चमकने लगा है। माता का अधिकांश समय पूजा पाठ योग और व्यायाम मे व्यतीत होता हैं। खेमा (क्षमा) सती को पूर्वाभास हो चुका है की कोख में पल रहा बच्चा विलक्षण प्रतिभा का धनी गणीनाथ जी का प्रतिरूप ही नहीं , राज्य का उत्तराधिकारी भी होगा। सुबह के बेला में चतुर्भुजी रूप बालक की आलौकिक सपनो से माता काफी रोमांचित हैं। 

प्रसव वेदना होने पर डगरीन को साय कालीन बगल के गाँव में सेलखी डोली लेकर बुलाने जाती है । बाबा गणिनाथ जी के मुख मंडल पर चिंता की रेखाओं के साथ सोने के खड़ाऊ पर प्रसव द्वार पर चहल कदमी कर रहें है जिसे गीत में इसका कई बार जिक्र किया गया है , डगरीन के अनुसार जब वह माता के पास जाती है तो उसकी आँखें तेज़ रोशनी से चौधिया जाता है और देखती है बालक जन्म ले चुका है और माता बेसुध अचेता अवस्था में है । शिशु के आभामंडल के प्रकाशपुंज से डगरिन डर जाती है और बच्चें को बिना स्पर्श किए दरवाजे से लौट जाती हैं। 

यही तेजस्वी , बाल बह्मचारी , सर्व शिक्षा और सर्व गुणों में निपुर्ण बालक भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी मध्य रात्रि पश्चात जन्म या अवतरण लिया जिसे श्री गणिनाथ जी महाराज और माता खेमा (क्षमा) सती ने प्यार से *" गोविन्द "* नाम दिया । बाल बह्मचारी गोविन्द जी ने भी शिष्य परम्परा चलाया । आज बहुत सारे उनके शिष्यगण जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण के प्रकोटशव के साथ श्री गोविन्द जी का जन्मोत्सव मनाते है जिसमे श्री गोविन्द जी , गणिनाथ जी , माता खेमा सती , दयाराम ,फेकू राम के साथ लाल खान की भी पूजा किया जाता है । घर परिवार के सारे सदस्य दिन मे अन्न जल ग्रहण नही करते और रात में महावीर जी का ध्वज दरवाजे पर पूजन पश्चात बदला जाता है और कुल देवताओं को आह्वान -पूजन होता है और अंत में भगवान कृष्ण के जन्म पश्चात पूजन और खुशियाँ मनाया जाता है । 

गोविन्द जी महाराज वेदों के ज्ञाता, धर्मपरायण, ज्ञानी, बाल ब्रह्मचारी, युद्ध कौशल मे निपूर्ण योद्धा थे। परिवार मे बड़े सदस्य होने के बावजूद राज्य सुख त्याग कर अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध युद्ध किया जैसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी भूमिका समाज को दिया था। बाबा गणिनाथ जी यदि मस्तिष्क थे तो गोबिंद जी उनकी भुजाएं। गोबिंद जी के कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना सुलतान खां, किश्ती खां और बकर खां अतातायीयो को मौत के घाट उतार कर लाल खां को बंदी बना कर बाबा के चरणों मे समर्पित करना हैं।गोविंद जी ने समाज मे व्याप्त सभी बुराइयों के विरुद्ध जैसे टोना टोटका, तंत्र मंत्र का दुरुपयोग , अंधविश्वास, अशिक्षा, समाज में बिखराव आदि के संग समाजिक अनुशासन के लिए "मान्यजन" व्यवस्था को मान्यता दिया। वर्तमान में यू पी, बिहार, झारखण्ड आदि प्रदेशो मे विलुप्त हों गया है परंतु नेपाल के कई जगहों पर देखने को मिलता हैं।

बाबा गणिनाथ जी का संपूर्ण परिवार गुरु शिष्य परंपरा मे सुदृढ़ता पूर्वक जीवन्त रहा हैं माता सती, बहने, बौधा बाबा आदि की भूमिका राज्य में बाबा गणिनाथ गोविंद जी महाराज के संग गुरुकुल, जन कल्याण मे सदैव देखने को मिला है। जहा तक मेरा व्यक्तिगत मान्यता है कानू, कांदू, हलवाई आदि के कई घरों में " सती " और "सती -बंदी " की कूल देवता/ देवी के रुप मे पूजन की मान्यता है। ये कोई और नहीं श्री गणिनाथ गोविंद जी कूल परिवार के सती (खेमा/क्षमा) और दोनो बहने
" बंदी" आप्रभांषित शब्द है।

उत्तर भारत - नेपाल में अधिसंख्य घरों में गोबिंद जी को कूल देवता के रूप में पूजन जन्माष्टमी को किया जाता है। मैथिली भोजपुरी, बज्जिका, मगही, अंगिका आदि लोक गीतों में गोबिंद जन्मोत्सव का विवरण विस्तृत रूप मे मिलता है जो आज भी प्रासंगिक हैं।

आप सभी को श्री गोविन्द जन्मोत्सव पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाये । आप सभी के मन वांछित मनोकामनाएं पूर्ण हो।


✍️रवींद्र कुमार मद्धेशीय
      नजफगढ़, नई दिल्ली

सोमवार, 15 अगस्त 2022

*** श्री लाल ख़ाँ ****

                                                               

                                                               *** श्री लाल ख़ाँ ****

जब कभी भी महान कर्मयोगी , संत प्रवर , समाज -सुधारक, महात्मा बाबा गणिनाथ जी अथवा गोविन्द जी महाराज की चर्चा होती है तो लाल खाँ का उल्लेख अवश्य मिलता है । सन्तों का जीवन समस्त जीवों , मानव कल्याण एव मानवता के लिए समर्पित होता है तथा ये जाति , सम्प्रदाय के बन्धनों से ऊपर उठकर होते है । महात्मा श्री गणिनाथ जी -गोविन्द जी के कथावृति से कर्मण्य लोकनायक , दार्शनिक , विचारक , समतामूलक समाज के समर्थक , योग एव औषधीय ज्ञान के मर्मज्ञ ज्ञाता थे । आज भी समाज में बाबा गणिनाथ जी -गोविन्द जी को कूल देवता और कूल गुरु के रूप में मान्यता प्राप्त है और पूजे जाते है ।

बाबा गणिनाथ जी द्वारा स्थापित " धर्मपुर राज्य पलवैया " की धन -धान्य , वैभव , सुख शांति और समिर्द्धि की चर्चा चारो तरफ थी । धर्मपुर राज्य पलवैया पर अगल बगल के जागीरदारों में ललचाई कुदृष्टि पड़ गयी थी । बाबा गणिनाथ जी वृद्ध हो चुके थे तथा साधू -सन्त स्वभाव वश ये दुष्ट लोग पलवैया को कमजोर राज्य समझ बैठे थे । ये लोग पलवैया को समूल नष्ट कर देना चाहते थे । इसमें से लाल ख़ाँ , किश्ती खाँ , बक्कर खाँ , सुल्तान खाँ आदि यवनो जगिरदारो -सेनापतियों ने पलवैया राज्य पर आक्रमण कर दिया ।

शान्ति , प्रेम अहिंसा का सदैव पाठ पढानेवाले बाल ब्रह्मचारी श्री गोविन्द जी महाराज ने पलवैया के शांतिप्रिय नागरिको को धर्म और राष्ट्र की रक्छा के लिए शस्त्र उठाने के लिए ललकारा , उनकी ओजस्वी धर्म शिक्छा या उपदेश से जनता मरने मारने पर तैयार हो गयी । इस युद्ध को गोविन्द जी ने " धर्मयुद्ध " का नाम दिया । कुछ लोगो को गढ़ (किला) के अंदर रक्छा के लिए छोड़ दिया और शेष को श्रीधर जी , रायचंद्र जी के साथ स्वयं के नेतृत्व में यवनो से लोहा लेने के लिए युद्ध छेत्र के लिए प्रस्थान किये ।आज भी गढ़ बाहर और गढ़ भीतर की चर्चा होती है ।

यवनों का नेतृत्व लाल खाँ नामक अधिनायक कर रहा था , वह बड़ा ही शूरवीर और लड़ाकू था । श्री गोविन्द जी के साथ भयंकर युद्ध होता है जिसमे मलेच्छ यवन बुरी तरह से परास्त होते है , अधिसंख्य मृत्यु को प्राप्त करते है । साथ ही उनका मुख्य सेनापति लाल खाँ बहादुरी से लड़ता है और अन्तः गम्भीर घायलावस्था में गिरफ्तार कर लिया जाता है । इस युद्ध में गोविन्द जी महाराज भी घायल हो जाते है तो अनुचर मृदुल ठंडा जल पीने को लेकर आते है ।परन्तु बगल में कराहता शत्रु लाल खाँ अत्यधिक घायल अवस्था में पानी मांग रहा है उसे देने को बोलते है । पानी पाकर लाल खाँ में दया और कृतज्ञता का भाव उत्पन्न होता है । गोविन्द जी महाराज अपनी सेवा सुश्रुषा से उसे भला चंगा भी कर देते है । 

लाल खाँ इस प्रेम , मानवीय सेवा से अभिभूत हो जाता है और उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है । बाबा गणिनाथ जी के चरणों में गिरकर जीवनदान माँगता है । बाबा गणिनाथ जी दयालुता और छमा का आदर्श रखते हुए माफ़ कर देते है और शिष्य बना लेते है तथा अपने मुख्य द्वार का पहरेदार नियुक्त कर देते हैं । बाबा अपने अनुचरों को आदेश देते है की जो भी मेरा भोजन होगा उसी में से लाल खाँ को प्रसाद के रूप में भोजन दिया जाएगा । जीवनपर्यन्त लाल खाँ ने बाबा की पूर्ण निष्ठां से सेवा किया । लाल खाँ एक हिन्दू मन्दिर की रक्छा करते हुए वीरगति को प्राप्त किया । यह हिन्दू मुस्लिम दोनों सम्प्रदायो के आपसी सौहार्द , मानवीय प्रेम और पूर्ण समर्पण का अप्रतिम उदाहरण है ।

आज भी जिस घर , मन्दिर में गणिनाथ - गोविन्द जी की पूजा होती है, वहाँ दयाराम , फेकू राम और लाल खान की पूजा अनिवार्य है ।दया राम और फेकू राम बाबा के परम् शिष्य के रूप मे अलग से पूजा की जाती हैं । वही पूजा घर या मन्दिर के बाहर लाल खाँ का भी चढ़ौना चढ़ाया जाता हैं । मांगलिक या शुभ कार्यो के अवसर पर जब अन्य देवी देवताओ की स्तुति की जाती है तो उस समय लाल खाँ से भी यज्ञ कार्य निर्विघ्न सम्पादित कराने हेतु प्रार्थना किया जाता हैं । पूजा के अवसर पर शुद्ध घी शक्कर से बना रोट चढ़ाया जाता है । श्री गणिनाथ जी - गोविन्द जी उच्च वर्ग , पिछड़ा वर्ग , हरिजन , खनाबदोष में कूल देवता के रूप में पूजे जाते है और सभी जगह लाल खाँ जी का उचित स्थान देखने को मिलता है ।
साथ ही साथ पलवैया धाम , राजेन्द्र नगर , पटना , घघा घाट , माड़ी पुर ,मुजफ्फरपुर , मगरदहि सम्मस्ती पुर , गया, नेपाल , दिल्ली आदि बाबा के मन्दिरो में लाल खाँ जी की पूजा देखने को मिलता है ।

NOTE-- लाल खाँ जी पर अंगिका , मगही , भोजपुरी , मैथली लोकगीतों में गीत मिलता है जिसे पूजन के समय माता बहने आज भी गाती है । श्री भोला नाथ मधुकर , डा सरोज प्रधान , अपनी वाणी , विभिन्न स्मारिका पुस्तको , गणींनाथ गोविन्द जी पत्रिका , उत्थान , गणिनाथ गोविन्द जी सम्वाद आदि पत्रिकाओ से साभार ।

लोक देवता और समता मूलक समाज के प्रणेता- श्री गणिनाथ जी ।



                                लोक देवता और समता मूलक समाज के प्रणेता- श्री गणिनाथ जी ।

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विभिन्न ज्ञानी , विद्वतजनों एव लोकगीतों के माध्यम से बाबा गणिनाथ जी के जीवन चरित्र का दर्शन होता है। जैसा विदित है बाबा का पदार्पण भूलोक पर बिहार के वैशाली ज़िला मे बौद्ध कालिन के अस्ताचल और विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं का भारत मे आगमन हो चुका था। बंगाल आदि प्रदेशो में मुस्लिम शासकों का शासन काल चल रहा था।

संत परम्परा के कड़ियों में इतिहासकारों ने इस महान दिव्य आत्मा को स्थान नहीं दिया है परंतु उनकी मानवता की सेवा का उल्लेख लाखों लाख़ अनुयायियों की लोकगीतों के माध्यम से जुबान पर है। उच्च कोटि के संत परम्परा के अनुकूल जाति, धर्म से परे उठकर मानवता , समतामूलक समाज के सृजन को जन मानस में प्रोत्साहित किया। दया, क्षमा , त्याग के प्रतिमूर्ति मानवीय अवगुणों लोभ - लालच, क्रोध, द्वेष से सदैव दूर रह कर आमजन के मध्य आदर्श प्रस्तुत किया है। आपकों विदित है की पलवैया के राजा होने के बावजूद गृहस्थ जीवन और संत परम्परा का अक्षरतः पालन किया है।

भारत के प्राचीन ऋषि गुरुकूल परम्परा को जीवन्त रखते हुए पलवैया को उच्चकोटि के शिक्षा का केन्द्र स्थपित किया था जिसमें धर्मशास्त्रों, ज्योतिष, खगोलीय, औषधिय, ध्यान- योग, वेद, तंत्र मंत्र आदि शिक्षा का समुचित जानकारी मिलता है। आपका सम्पूर्ण परिवार गुरु सिख परंपरा से संबद्ध रहा है जिसमें आपके प्रथम पुत्र गोविन्द जी महाराज के अनुयायी, पत्नी माता खेमा सती के पूजक सति और दोनो पुत्रियों बंदी और बौधा बाबा को कूल देवता या देवी के रूप मे पूजक सर्व जातीय समाज में मिलते हैं।

श्री गणिनाथ जी के चमत्कार की कई जीवंत कहानियां आज भी भक्तजनों से मिल जाता हैं। वैदिक धर्म के पक्षधर व पालक कूलगुरू जी महाराज ने समाज में व्याप्त गलतियों को सुधार करने के लिए *मांजन्य* व्यवस्था को लागू किया जो आज भी नेपाल के तराई क्षेत्र में देखने को मिलता है, उपनयन संस्कार की अनिवार्यता , मांस मदिरा , पशुओं के बंध्याकरण पर रोक आदि के साथ समाज में *मूल डीह* प्रचलन से आधुनिक काल के वैज्ञानिक सम गोत्रीय विवाह के दोष से बचाव किया था।

बाबा गणिनाथ गोविंद जी ने अपने भक्तों व अनुयायियों को पार्थिव- पिंड स्वरूप में पूजन का महत्व दिया जिसमे पाँच तत्वों के समिश्रण से साधक को नव ऊर्जा (ऊष्मा) का संचार होता है, स्थूल पिण्ड पूजन से घर परिवार में सदैव सुख शान्ति, बाहरी आपदा विपदा से रक्षा गुरु कृपा बनी रहती हैं, इस लोक में यश-कृपा, वैभव प्राप्त करने के साथ मृत्यु उपरांत जीवन मरण के चक्कर से मुक्ति पा जाते हैं। पलवैया धाम के पंडा गण प्रसाद स्वरूप पलवैया की मिट्टी अपने भक्तजनों को देते है जिसका भक्तजन अपने गोहबर मे स्थापित पिंड पर लेप चढ़ाते है और ललाट पर त्रिपुंड या टीका कर परमपूज्य संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ गोविंद का स्मरण करता है।

बाबा गणिनाथ महाराज जी के चौदह दिवान।।



बाबा गणिनाथ महाराज जी का प्रकाट्य शनिवार को हुआ था। इसलिए शादी-विवाह व मांगलिक कार्य में उनकी विशेष पूजा शनिवार को होती है। जिसे सुंदरी पूजा कहते हैं। 

सुन्दरी पूजा में चौदह देवताओं की पूजा होती है। 

1- बाबा गणिनाथ, 
2- माता क्षेमा सती, 
3- श्रीगोविन्द जी, 
4- श्रीरामचन्द्र जी, 
5- श्रीधर जी, 
6- सोनामती, 
7- शीलामती, 
8- चतुरी बहुरिया, 
9- बिजली बहुरिया, 
10- श्रीसहदेव राय, 
11- जगन्नाथ राय, 
12- श्रीबोध महापति राय, 
13- श्रीचवुपाणि राय, 
14- नीलकंठ राय 

की पूजा होती है। बाबा गणिनाथ समाज में प्रेम, सद्भाव, सेवा, त्याग तथा परोपकार का संदेश देते थे। मदिरा, मांस, व्यभिचार से बचने का संदेश देते थे।

शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

🙏 बाबा गणिनाथ महाराज जी 🙏



परमपूज्य बाबा गणिनाथ जी इस भूलोक में धर्म कि रक्षा, मानवता का संदेश और आपस में बढ़ रही वैमनस्यता को दूर करने के लिए अवतरित हुए थे. भगवान शिव जी के परम भक्त श्री मंशाराम महनार (वैशाली) में गंगा के किनारे अपनी एक कुटिया में सपत्नीक रहते थे.मंशाराम जी सात्विक और धार्मिक विचारों को मानने वाले थे.वे अपने गृहस्थ जीवन के साथ साथ अपने भोले बाबा की सदैव उपसना किया करते रहते थे. उनका अपना जीवन से खुश रहते थे. संतानहीन होने बाद भी अपने इश्वेर पर पूरी तरह से विश्वास था. इसी विश्वास और मंशाराम की भक्ति से भोले बाबा प्रशन्न होकर एक रात उनके सपने आये और कहा कि “ जल्द ही आपको आपकी भक्ति और विश्वास का फल मिलेंगा.”
मंशाराम नित्य प्रतिदिन की तरह लकड़ी लेने के लिए वन में गए. भीतर वन में पहुचने पर मंशाराम क्या देखते है कि एक बालक पीपल के पेड़ के नीचे किलकारी कर रहा है, उसके चेहरे से अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश निकाल रहा है, बालक मंद मंद मधुर मुस्करा रहा है,तभी बालक के अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश के प्रभाव से उस पीपल के पेड़ से मधु की बूंदे निकल कर बालक के मुँख में जा रही थी और वह बालक उस मधु को बड़े चाव से मधुपान करने लगे.बालक के इसी अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश का प्रभाव ही था वन में सारे जीव जंतु खुश होकर इधर उधर विचरण करने लगे.
मंशाराम इस द्रश्य को देखकर भावविभोर हो कर अपनी सुधभुध खो बैठे.तभी आकाशवाणी होई कि “मंशाराम, ये है तुमारी भक्ति का फल, इस बालक को अपने घर ले जाओ और इसे अपने पुत्र की तरह पालन करो”. मंशाराम उस बालक को अपनी गोद में लिया और अपने कुटिया में पहुँच कर और पत्नी से बोले यह बालक अपना है भोले बाबा ने तुम्हरी गोद भर दी. बालक के अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश के कारण गांव में समृधि बढ़ने लगी. मंशाराम जी की इच्छा थी कि अपने स्वजनों को भोज में तसमई खिलाए पर वे अपने इस इच्छा को पूरी नही कर पा रहे थे अगर इस कार्य में कोई बाधा थी वो था धन जो मंशाराम के पास पर्याप्त नहीं था.
बालक अपनी पिता की इस इच्छा को जानकर सभी स्वजनों को निमंत्रण भेजा. निमंत्रण स्वजनों को मिलने की सूचना मिल गयी यह जानकर मंशाराम ने भोज की तैयारी करने लगे. भोज को तैयार करने वास्ते पर्याप्त बर्तन मंशाराम के पास नहीं थे, और बर्तन के लिए वे कुम्हार के पास गए और बर्तन माँगा, कुम्हार मंशाराम की आर्थिक को जानकर बहाने बना कर बर्तन देने से मना कर दिया.मंशाराम उदास हो गए, पिता की उदासी को देख कर बालक ने अपनी लीला दिखाई. वही कुम्हार जब अपने बर्तन को पकाने के लिए आव लगाया तो वो जला ही नहीं, लाख प्रयतन करने पर भी आव नहीं जला तो नहीं जला.
तभ कुम्हार हार कर अपने इश्वर को स्मरण किया इश्वर ने उसकी की गयी गलती को बताया, अपनी गलती को जानकर, कुम्हार भाग कर बालक के चरणों में लेट गया और भूल को स्वीकार किया.बालक ने उसकी इस गलती को क्षमा कर दिया. कुम्हार का आव लग गया, बर्तन मंशाराम को दिया.बर्तन की व्यवस्था हो जाने के बाद मंशाराम दूध के लिए ग्वाले के पास गए, ग्वाला जो काना था उसने भी बहाना बनाकर दूध देने से मना कर दिया. और एक गाय जो दूध ही नहीं देती थी, की ओर इशारा कर कहा उसे ढूह लो और ढूध ले लो, बालक जो मंशाराम के साथ थे फिर अपनी लीला दिखाई और उसी गाय ने इतना दूध दिया कि ग्वाला आश्चर्यचकित हो गया, और वह समझ गया कि यह बालक साधारण बालक नहीं है, तुरंत बालक के चरणों में लेट गया,और क्षमायाचना की बालक ने क्षमा कर दिया और उसकी आँख भी ठीक कर दी.
तय समय पर भोज में तसमई पकाई गयी और तसमई को सभी लोगो ने खाया और इसकी स्वाद की महक से आस पास के लोग भी आने लगे, पर यह तसमई कम नहीं पडी. सभी ने इसका आनंद लिया. बालक की इस लीला को देख कर सभी लोग भोले बाबा की जयकरा लगाया और बालक का नाम गणिनाथ रखा और जय जयकर किया. बालक गणिनाथ ने तपस्या करने के लिए पिता मंशाराम से अनुमति मांगी, अनुमति मिलने पर तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर गए और पूरे अठ्ठारह वर्षों तक तपस्या की.तपस्या और योग से गणिनाथ जी ने आठ सिद्धि और नौ निधि को प्राप्त किया. गणिनाथ जी तपस्या पूरी करने के बाद वापस अपने गांव आये और एक यज्ञ का आयोजन किया.

यज्ञ के उपरांत सभी लोगो चार संदेश दिया: 
1. वेदों का अध्यन करे. 
2. सच्चाई और धर्म का पालन करे. 
3. काम, क्रोध, लोभ, अभिमान और आलस्य का त्याग करे. 
4. नारी का सम्मान और उसकी रक्षा करे.

बाबा गणिनाथ जी का उपदेश सरल था जिसे सुनने के लिए आस-पास से लोगबाग आने लगे, और बाबा के आशीर्वाद से उनके जीवन सरल और सुगम हो गया. बाबा गणिनाथ जी के उपदेश और जीवन संदेश से वैशाली के राजा धरमपाल भी प्रभावित होकर पलवैया के आस पास की सारी जमींन बाबा के चरणों में समर्पित कर दिया. और पलवैया का राजा घोषित कर दिया.
बाबा गणिनाथ जी का विवाह राजा चक्रधर की पुत्री क्षेमा जी से हुआ.बाबा गणिनाथ जी कि ही तरह माता क्षेम भी धर्म का पालन और उसकी रक्षा करने वाली थी. बाबा जी और माता क्षेमा जी के अपने परिवार में पांच संतान क्रमश: रायचंद्र, श्रीधर, गोबिंद, सोनमती एयर शीलमती थे.बाबा गणिनाथ जी कि ही तरह पांचो भाई-बहन वेद, शस्त्र और शास्त्र में प्रवीणता प्राप्त थी. बाबा गणिनाथ जी राज्य चौदह कोस तक फैला था.
एक बार राज्य के कदली वन में डाकुओं ने बसेरा बना कर कदली वन से गुजरने वाले को लूट कर मार देते थे. इस डाकूओं का सफाया करने के लिए रायचन्द्र और श्री धर के नेतृत्व में सेना भेजी और उन डाकूओं का समूल नाश किया गया. बाबा के राज्य में जादू टोना करने वाले से राज्य के लोग परेशान हो रहे थे और इसके दुष्प्रभाव से धर्म कार्य में बाधा आ रही थी .अपने राज्य के लोग को जादू-टोना करने वाले से मुक्ति दिलाने के लिए बाबा गणिनाथ जी ने गोविन्द जी को भेजा , गोविन्द जी जे अपने योग तपबल से इन सभी मायावी शक्तियों का नाश किया. पलवैया राज्य के बाहर यवनों का अत्याचार बढ़ रहा गया था, यवनों के अत्याचार के कारण लोगबाग अपने धर्म कार्य नहीं कर पा रहे थे.
इन यवनों से मुक्ति दिलाने के लिए बाबा गणिनाथ जी ने एक सेना तैयार की, इस सेना में लोगो का आहवाहन किया और ३६० जगह के लोग इस सेना में शामिल हुए(समाज के मूलडीह इन्ही ३६० जगहों के नाम पर आधारित है). इस सेना का नेतृत्व श्री रायचन्द्र और श्रीधर को सौपा और यवनों से लड़ने के लिए भेजा. बाबा कि सेना और यवनों में भयंकर युद्ध हुआ, और युद्ध के बीच में गोबिंद जी के भी आने से सेना में दुगना उत्साह बढ़ गया और यवन युद्ध हार गए. यवनों का सरदार बाबा गणिनाथ जी के तपबल और योगशक्ति से इतना प्रभावित हुआ कि जीवनपर्यंत उनका शिष्य बनकर उनकी सेवा करता रहा. बाबा गणिनाथ जी और माता क्षेमा के साथ गंगा में समाधी ली. और आज उस स्थान एक देव स्थान के रूप में पूजनीय स्थल है.

BABA GANINATH PHOTO