शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

गुरु ने दिया नाम :- रामलाल से पल्टू दास




गुरु ने दिया नाम :- रामलाल से पल्टू
पलटना,यानि लोक-प्रचलित अर्थो में, अपनी जुबान से पलट जाना,मुकर जाना कहलाता है और गाली माना जाता है I किन्तु संतो की दुनिया में सब कुछ निराला और अपूर्व होता है I इनकी दुनिया के मूल्य-मन-चलन सब उलट और विपरीत होते है,हमारी भौतिक दुनिया से I अतः संत पल्टू का पलटना शोभा,सम्मान,आदर्श और वीरता का कार्य हो गया I क्यूंकि पल्टू मात्र भौतिक सुखों से नहीं पलटे,बल्कि ऐंद्रिकता के सारे आकषॆणों से पलट कर सभी प्रबल बंधनों के विरुद्धआत्म लोक की ओर मुड़ गये I वह ऐसा पलटे कि अपना पहले का नाम, धाम, जन्मतिथि या परिचय सब भुला दिया I ऐसा पलटे कि भौतिक ही नहीं, भूतकाल की स्मृतियों को भी पीठ दे दी और स्वयं को पल्टू कहलाकर, स्वयं को पल्टू होने पर सुख माना, आनंदित हुए, गर्व का अनुभव किया, क्यूँ कि यह नाम गुरु ने दिया था I यह उनकी असली पहचान थी I गुरु ने गद्गद होकर कहा, ‘अरे ! यह बनिया तो पलट गया ! दुनिया से , दुनियावी चलन से I इसने आध्यात्मिक अन्तर्मुखी चलन पकड़ लिया !’ और इतना सुनना था उस बनिए का की उसने इस शब्द को ,पकड़ लिया I और अपनी पहचान बना लिया I
संसार में रहकर, संसार से पलटना कितना दुष्कर कार्य है I यह हर संसारी जानता है I और यदि किसी भी भांति, संयोग से, किसी गुरु, पीर की कृपापूर्ण सहायता या प्रेरणा से यह घटित हो जाय तो कैसा आह्रादकारी हो जाता है I इस तरह पलटना की जीवन को सार्थकता, पूर्णता एवं चरम आनंद की उपलब्धि हो I या फिर पल्टू बनिए से ही पूछ लो इस पलटने का आनंद! उसे बहुत भटकने के पश्चात् मिला है यह पलटना !
जीव , ब्रम्ह के अति निकट होते हुए भी अति दूर इस कारण से होता है , क्योंकि उसने ब्रम्ह की ओर पीठ कर रखी है I इस कारण दोनों के मध्य माया का पर्दा , अंधकार पसर जाता है I किंतु जब भी कभी ,किसी भी कारण से ब्रम्ह की ओर जीव मुख कर लेता है, ब्रम्ह सम्मुख हो जाते हैं, तब माया विलुप्त हो जाती है I
हित उपदेश की दीक्षा सिर्फ संत ही दे सकते है :-
संत सनेही नाम है न सनेही संत II
नाम सनेही संत नाम को वही मिलावैं II
वे हैं वाकिफकार मिलन की राह बतावैं II
जप तप तीरथ करें बहुतेरा कोई II
बिना वसीला संत नाम से भेंट न होई II
कोटिन करै उपाय भटक सगरौ से आवै II
संत दुवारे जाय नाम को घर तब पावै II
पल्टू यह है प्राण पर आदि सेती औ अंत II
संत सनेही नाम है नाम्स्नेही संत II
‘नाम’ शब्द गुरु लोग,संत लोग देते हैं,प्रदान करते हैं I मगर यह ‘नाम’ है क्या ?
इस पर पल्टू दास जी प्रकाश डालते हुए कहते है :-
जो कोई चाहै नाम तो नाम अनाम है I
लिखन पढन में नाहीं निझच्छर काम है II
रूप कहौ अनरूप पवन अनरेख ते I
अरे हाँ पल्टू गैब दृष्टि से संत नाम वह देखते II
नाम डोरि है गुप्त कोऊ नहिं जानता I
निः अच्छर निः रूप दृष्टि नहिं आवता II
अरे हाँ पल्टू देखत हैं इक संत और सब पेखना II
फुटि गया आसमान सबद की धमक में I
लगी गगन में आग सुरति की चमक में I
सेसनाग औ कमठ लगे सब कॉपने I
अरे हाँ पल्टू सहज समाधि की दसा खबरि नहिं आपने II
नाम तो अनाम ही हैं यह कोई भाषा का, लिखने-बोलने जैसा कोई शब्द नहीं है I नाम निराकार है I यानि अनरूप है I तथा रोप्प रंगहीन है I वह आँखों से दिखता भी नहीं है I सदा गुप्त रहता है Iसंत लोग ही ज्ञाता हैं I जिस प्रकार पवन की प्रकृति होती है—अर्थात न रूप , न गंध, न आकार, मगर सत्य है,हवा होती है, उसी प्रकार की कुछ प्रकृति नाम की भी है I संत उसे अलोकिक शक्ति से, दिव्य दृष्टि से देख-समझ लेते हैं Iवह हमारे भीतर है I जब सुरत हमारे अंत गगन को भेद कर उध्र्वाॆ,यानि ऊपर को चढ़ती है तब नाम की ध्वनि हमें सुनाई पड़ती है I और पूर्ण अंदरूनी आकाश ,प्रकाश से चकाचौंध हो जाता है I

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

संत पलटूदास का सन्देश ...........



दास पलटू कहै नाम का याद करू ,      ख्बाब की लहरि में काह भूला ॥

देह और गेह परिवार को देखि कै,      माया के जोर में फिरै फूला ।

जानता सदा दिन ऐसे ही जायेंगें,     सुन्दरी संग सुखपाल झूला ॥
संत पलटू साहिब अपने इस भजन में कहते हैं कि अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। किसी को अपने स्वस्थ व् सुंदर शरीर पर अभिमान है तो किसी को अपने आलिशान मकान पर गर्व है और किसी को अपने परिवार के सदस्यों पर घमंड है कि वो ऊँचे पदों पर हैं। अपने.शरीर, मकान, परिवार, वाहन और धन-दौलत पर आदमी घमंड करते हुए माया के नशे में हमेशा चूर रहता है। वो ये भूल जाता है कि सब दिन एक समान नहीं होते हैं। ख़राब समय पता नहीं कब जीवन में आ जाये। बहुत से लोग अमीरी के समय में सुंदर स्त्रियों का सुख भोगने के लिए दिन रात अपनी दौलत लुटातें हैं। सुंदर स्त्री के संग सुख का झूला झूलते हैं यानि नशा करतें हैं, नाच-गाना देखतें हैं और विभिन्न प्रकार के भोग-विलास करतें हैं। संत पलटू साहिब की वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी। वर्तमान समय में हमारे देश के कई बड़े राजनीतिक नेता और कई प्रसिद्ध धार्मिक लोग जेलों में बंद हैं। ये लोग कभी इस संसार में अपने को राजा और यहाँ तक कि स्वयं को भगवान से कम नहीं समझते थे और अपने मन में कई तरह के अहंकार पाले घूमते थे। भ्रष्टाचार और व्यभिचार में लिप्त रहे ये लोग आज समय के हाथों बेबश व् लाचार हैं।
अपने अच्छे समय में इन्हें आभास भी न था कि एक दिन ऐसा भी बुरा समय आएगा। हर मनुष्य को अपने अच्छे-बुरे कर्मो का फल एक दिन जरुर भोगना पड़ता है, इसीलिए प्रत्येक अच्छा-बुरा कर्म सोच-विचार कर करना चाहिए। देश के नौजवानों को गलत ढंग से पैसा नहीं कमाने और जीवन के अच्छे समय में अपने पद व् प्रतिष्ठा का दुरूपयोग नहीं करने की शपथ लेनी चाहिए। जीवन में कभी भी किसी का तन, मन या धन से शोषण मत करें। रातो-रात अमीर बनने का सपना मत देखें और अपने मेहनत की कमाई कर सुख-शांति से जीवन जियें। सबसे बड़ी बात जो सदैव याद रखने वाली है वो ये कि भगवान का नित्य स्मरण करना चाहिए, पता नहीं कब ये नश्वर शरीर छूट जाये। शरीर तो मिटटी का घड़ा है पता नहीं कब फूट जाये। भगवान को हमेशा याद करते रहेंगे तो जीवन में हर समय उनकी दया मिलती रहेगी। भक्तिमार्ग में स्मरण का अर्थ है अंतिम साँस तक या मरते दम तक भगवान को याद करना और उनका कोई भी नाम जो आपको प्रिय लगे या आपके गुरु जी ने दिया हो उसका निरन्तर जाप करते रहना।
चारि जून खात है बैठि कै खुसी से,    बहुत मुटाई के भया थूला ।
सेज-बंद बांधि के पान को चाभते,      रैन दिन करत है दूध कूला ॥

संत पलटू साहिब कहते हैं कि अमीरी के समय में व्यक्ति घर में व् घर के बाहर विभिन्न प्रकार के अपने मन-पसंद भोजन करता है और चार बार यानि बार-बार वक़्त-बेवक्त अपना मन-पसंद भोजन करता है, जिसके कारण उसका शरीर मोटा और बेडौल हो जाता है। वो महंगे गदेदार बिस्तर पर सोता है। जब इच्छा होती है पान चबा लेता है और रात-दिन वो दूध से कुल्ला करता है यानि अच्छे समय में प्रचुर मात्रा में धन पास में होने पर व्यक्ति फिजूल के खर्च कर अपनी अमीरी का दिखावा करता है। सही या गलत ढंग से दौलत कमाकर जो लोग अमीर हो जाते हैं उनका रहन-सहन बहुत अमीराना व् दिखावटी हो जाता है। उनके यहाँ पार्टी हो या शादी, रुपया जी खोल के खर्च किया जाता है। पलटू साहिब की वाणी आज के समाज पर भी लागू होती है। हमारे समाज में बहुत से अमीर लोग आरामतलबी का जीवन बिता रहे हैं। वो कई तरह की फिजूलखर्ची कर अपने अमीर होने का दिखावा करते हैं। अपने सांसारिक वैभव का दिखावा करके ऐसे लोग ये जाहिर कर देते हैं कि उनके पास आध्यात्म रूपी असली दौलत नहीं है।
आध्यात्म रूपी असली दौलत ही मृत्यु के समय और उसके बाद काम आने वाली हैं। अपनी ख़राब दिनचर्या और ख़राब खान-पान के कारण बहुत से लोग कई तरह के रोगों के शिकार भी हो रहे हैं। आज हमारे देश का सामाजिक ढांचा इतना बिगड़ गया है कि राजा यानि सत्ता का सुख भोग रहे लोगों से लेकर प्रजा यानि आम आदमी तक सभी सही या गलत ढंग से रुपया कमाकर एशो-आराम का जीवन जीना चाहतें हैं। गलत ढंग से यानि घोटाले करके रुपया कमाने के चक्कर में आज बहुत से नेता जेलों में बंद हैं। भगवान ने इन्हें इतना दिया था कि दो जून की रोटी ख़ुशी से खाकर सुख-शांति और सम्मान के साथ अपना जीवन बिता सकते थे, लेकिन इन्हें संतोष न था। आज ये जेलों में बंद हो अपने लालच और गलत कर्मों का फल भोग रहें हैं और अपमानित जीवन जी रहे हैं। अत:नौजवानों को इस भजन से प्रेरणा ले जीवन में कभी भी लोभ-लालच में आकर गलत कामों से रूपया कमाने की बात सोचना भी नहीं चाहिए। उन्हें अपनी मेहनत और भगवान पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। इस भजन से यह भी प्रेरणा मिलती है कि शारीरिक रोगों और मानसिक तनाव से बचने के लिए अपनी दिनचर्या और खान-पान को संयमित और अनुशासित रखना चाहिए।
जानता अमर हूँ मरूँगा अब नहीं,    बाघ की रास जा काल हूला ।
दास पलटू कहै नाम का याद करू,    ख्बाब की लहरि में काह भूला ॥

धन-दौलत के नशे में चूर हो आदमी खूब भोग-विलास करता है और इस भ्रम में जीता है कि वो अब अमर हो गया है और रूपये से वो स्वास्थय, भोग-विलास और दुनिया की हर सुख-सुविधा खरीद सकता है। आदमी ऐसा सोचते हुए ये भूल जाता है कि अपनी सारी दौलत देकर भी मृत्यु से नहीं बच सकता है। मृत्यु को आप रिश्वत देकर उससे नहीं बच सकते हैं और मृत्यु जीवन में 
किसी भी क्षण आ सकती है और मृत्यु बाघ की तरह किसी भी समय अपना नुकीला पंजा मनुष्य के शरीर में भोंक सकती है। संत पलटू साहिब फरमाते हैं कि हे मनुष्य यदि अपना कल्याण चाहते हो तो भगवान के किसी भी नाम का सुमिरन करना प्रारंभ कर दो। ये तुम्हारी धन-दौलत और ये सुख-सुविधा एक सपने की तरह है और सपने का क्या भरोसा की कब टूट जाये। सुख के दिन स्वप्न की लहरों के समान हैं जो पता नहीं कब टूट-फूट जाये। इस भजन में संत पलटू साहिब भोग-विलास में अपना कीमती जीवन गवां रहे लोगों को चेताते हैं कि समय बदलते देर नहीं लगती है। जीवन में ख़राब समय और मृत्यु दोनों ही कभी भी आ सकतें हैं। अत: भोग-विलास छोड़कर भगवान के किसी भी नाम का जाप करो और उम्र बढ़ने के साथ-साथ दुनिया से अपना लगाव कम करते हुए भगवान से लगाव बढ़ाते जाओ।

शनिवार, 12 सितंबर 2015

बाबा गणिनाथ प्राचीन देव स्थान धर्मपुर राज पल्वैया धाम












बाबा धाम का इतिहास



बाबा धाम का इतिहास

  • बंधुओं ,
संतशिरोमणि बाबा गणिनाथ  की समाधि-भूमि पावन पलवैया, हम सभी स्वजातीय बंधुओं का एक परम पुज्यनीय धाम है । यह बिहार राज्य के वैशाली जिलान्तर्गत महनार प्रखण्ड में अवस्थित है । आप सभी जानते हैं की बाबा के समाधि-स्थल पर एक भव्य मंदिर हुआ करता था जो गंगा नदी के कटाव (1938-1942) में विलीन हो गया ।
  • हमारे सम्मानित बुजुर्गों ने पलवैया में 1984 में पुनः एक मंदिर का निर्माण किया वह भी दुर्भाग्यवश ई0 सन 1998 में संध्या 4 बजकर 55 मिनट पर गंगा नदी के कटाव में विलीन हो गया । कटाव के समय में वैशाली जिले के ममसई के स्वजातीय जमींदार परिवार आगे आया तथा मंदिर के अवशेष तथा शिखर को बचा कर अपने यहाँ सुरक्षित रख लिया जो हमारी धरोहर के रूप में आज भी मौजूद है ।
  • भविष्य के भव्य मंदिर में ईसका उपयोग किया जाना है । बाबा के भक्तों ने 1999 0 सन में बाबा गणीनाथ सेवाश्रम,पलवैया (रजि0) के अंतर्गत पुनः नए सिरे से मंदिर का निर्माण शुरू किया जो वर्तमान में अविकसित रूप में है ।
  • पश्चिम बंगाल के स्वजातीय बंधुओं के अनुकरणीय वृहत सहयोग तथा नेपाल के स्वजातीय बंधुओं , प्रवासी स्वजातीय बंधु डॉ राज एवं कई अन्य भाइयों के सहयोग से 18 कट्ठा जमीन क्रय कर मंदिर परिसर का विस्तार किया जा चुका है ।
  • मंदिर परिसर को और विस्तारित करने हेतु संलग्न भूमि को क्रय करने का प्रयास जारी है । बंधुओं , बाबा के धाम में, बाबा के मंदिर को विश्वस्तरीय स्वरूप देने तथा स्थापत्य की दृष्टि से एक बेजोड़ मंदिर के निर्माण करने की जन-आकांक्षा वर्षों से महसूस की जा रही है ।
  • जन भावना यह भी है की यह मंदिर हमारे समाज की दृढ़ तथा शक्तिशाली होने के प्रतीक-स्वरूप बन सके । बाबा गणीनाथ सेवाश्रम ,पलवैया ईस आकांक्षा को साकार करने के अपने दृढ़-संकल्प में भागीदारी के लिए सभी स्वजातीय बंधुओं ,माताओं एवं बहनों को नेह-निमंत्रित करता है ।
  • हम सभी स्वजातीय मधेशीया कानू परिवार, तन-मन एवं धन से सहयोग कर कम से कम समय में ईस लक्ष्य को प्राप्त करेंगे। । बाबा हम सब का मार्गदर्शन करेंगे तथा सभी बाधाओं को दूर करेंगे । ईस आशा और विश्वास के साथ बाबा गणीनाथ जी महाराज के चरणों में शत-शत नमन ।



परमपूज्य संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ जी का संक्षिप्त जीवन परिचय







परमपूज्य संत शिरोमणि बाबा गणिनाथ जी
का संक्षिप्त जीवन परिचय
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ 
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ 

  • परमपूज्य बाबा गणिनाथ जी इस भूलोक में धर्म कि रक्षा, मानवता का संदेश और आपस में बढ़ रही वैमनस्यता को दूर करने के लिए अवतरित हुए थे. भगवान शिव जी के परम भक्त श्री मंशाराम महनार (वैशाली) में गंगा के किनारे अपनी एक कुटिया में सपत्नीक रहते थे.मंशाराम जी सात्विक और धार्मिक विचारों को मानने वाले थे.वे अपने गृहस्थ जीवन के साथ साथ अपने भोले बाबा की सदैव उपसना किया करते रहते थे. उनका अपना जीवन से खुश रहते थे. संतानहीन होने बाद भी अपने इश्वेर पर पूरी तरह से विश्वास था. इसी विश्वास और मंशाराम की भक्ति से भोले बाबा प्रशन्न होकर एक रात उनके सपने आये और कहा कि जल्द ही आपको आपकी भक्ति और विश्वास का फल मिलेंगा.
  • मंशाराम नित्य प्रतिदिन की तरह लकड़ी लेने के लिए वन में गए. भीतर वन में पहुचने पर मंशाराम क्या देखते है कि एक बालक पीपल के पेड़ के नीचे किलकारी कर रहा है, उसके चेहरे से अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश निकाल रहा है, बालक मंद मंद मधुर मुस्करा रहा है,तभी बालक के अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश के प्रभाव से उस पीपल के पेड़ से मधु की बूंदे निकल कर बालक के मुँख में जा रही थी और वह बालक उस मधु को बड़े चाव से मधुपान करने लगे.बालक के इसी अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश का प्रभाव ही था वन में सारे जीव जंतु खुश होकर इधर उधर विचरण करने लगे.
  • मंशाराम इस द्रश्य को देखकर भावविभोर हो कर अपनी सुधभुध खो बैठे.तभी आकाशवाणी होई कि मंशाराम, ये है तुमारी भक्ति का फल, इस बालक को अपने घर ले जाओ और इसे अपने पुत्र की तरह पालन करो”. मंशाराम उस बालक को अपनी गोद में लिया और अपने कुटिया में पहुँच कर और पत्नी से बोले यह बालक अपना है भोले बाबा ने तुम्हरी गोद भर दी. बालक के अद्भुत अलौकिक दिव्य प्रकाश के कारण गांव में समृधि बढ़ने लगी. मंशाराम जी की इच्छा थी कि अपने स्वजनों को भोज में तसमई खिलाए पर वे अपने इस इच्छा को पूरी नही कर पा रहे थे अगर इस कार्य में कोई बाधा थी वो था धन जो मंशाराम के पास पर्याप्त नहीं था.
  • बालक अपनी पिता की इस इच्छा को जानकर सभी स्वजनों को निमंत्रण भेजा. निमंत्रण स्वजनों को मिलने की सूचना मिल गयी यह जानकर मंशाराम ने भोज की तैयारी करने लगे. भोज को तैयार करने वास्ते पर्याप्त बर्तन मंशाराम के पास नहीं थे, और बर्तन के लिए वे कुम्हार के पास गए और बर्तन माँगा, कुम्हार मंशाराम की आर्थिक को जानकर बहाने बना कर बर्तन देने से मना कर दिया.मंशाराम उदास हो गए, पिता की उदासी को देख कर बालक ने अपनी लीला दिखाई. वही कुम्हार जब अपने बर्तन को पकाने के लिए आव लगाया तो वो जला ही नहीं, लाख प्रयतन करने पर भी आव नहीं जला तो नहीं जला.
  • तभ कुम्हार हार कर अपने इश्वर को स्मरण किया इश्वर ने उसकी की गयी गलती को बताया, अपनी गलती को जानकर, कुम्हार भाग कर बालक के चरणों में लेट गया और भूल को स्वीकार किया.बालक ने उसकी इस गलती को क्षमा कर दिया. कुम्हार का आव लग गया, बर्तन मंशाराम को दिया.बर्तन की व्यवस्था हो जाने के बाद मंशाराम दूध के लिए ग्वाले के पास गए, ग्वाला जो काना था उसने भी बहाना बनाकर दूध देने से मना कर दिया. और एक गाय जो दूध ही नहीं देती थी, की ओर इशारा कर कहा उसे ढूह लो और ढूध ले लो, बालक जो मंशाराम के साथ थे फिर अपनी लीला दिखाई और उसी गाय ने इतना दूध दिया कि ग्वाला आश्चर्यचकित हो गया, और वह समझ गया कि यह बालक साधारण बालक नहीं है, तुरंत बालक के चरणों में लेट गया,और क्षमायाचना की बालक ने क्षमा कर दिया और उसकी आँख भी ठीक कर दी.
  • तय समय पर भोज में तसमई पकाई गयी और तसमई को सभी लोगो ने खाया और इसकी स्वाद की महक से आस पास के लोग भी आने लगे, पर यह तसमई कम नहीं पडी. सभी ने इसका आनंद लिया. बालक की इस लीला को देख कर सभी लोग भोले बाबा की जयकरा लगाया और बालक का नाम गणिनाथ रखा और जय जयकर किया. बालक गणिनाथ ने तपस्या करने के लिए पिता मंशाराम से अनुमति मांगी, अनुमति मिलने पर तपस्या के लिए हिमालय पर्वत पर गए और पूरे अठ्ठारह वर्षों तक तपस्या की.तपस्या और योग से गणिनाथ जी ने आठ सिद्धि और नौ निधि को प्राप्त किया. गणिनाथ जी तपस्या पूरी करने के बाद वापस अपने गांव आये और एक यज्ञ का आयोजन किया.
  • यज्ञ के उपरांत सभी लोगो चार संदेश दिया:
    1. वेदों का अध्यन करे.
    2. सच्चाई और धर्म का पालन करे.
    3. काम, क्रोध, लोभ, अभिमान और आलस्य का त्याग करे.
    4.        नारी का सम्मान और उसकी रक्षा करे.
  • बाबा गणिनाथ जी का उपदेश सरल था जिसे सुनने के लिए आस-पास से लोगबाग आने लगे, और बाबा के आशीर्वाद से उनके जीवन सरल और सुगम हो गया. बाबा गणिनाथ जी के उपदेश और जीवन संदेश से वैशाली के राजा धरमपाल भी प्रभावित होकर पलवैया के आस पास की सारी जमींन बाबा के चरणों में समर्पित कर दिया. और पलवैया का राजा घोषित कर दिया.
  • बाबा गणिनाथ जी का विवाह राजा चक्रधर की पुत्री क्षेमा जी से हुआ.बाबा गणिनाथ जी कि ही तरह माता क्षेम भी धर्म का पालन और उसकी रक्षा करने वाली थी. बाबा जी और माता क्षेमा जी के अपने परिवार में पांच संतान क्रमश: रायचंद्र, श्रीधर, गोबिंद, सोनमती एयर शीलमती थे.बाबा गणिनाथ जी कि ही तरह पांचो भाई-बहन वेद, शस्त्र और शास्त्र में प्रवीणता प्राप्त थी. बाबा गणिनाथ जी राज्य चौदह कोस तक फैला था.
  • एक बार राज्य के कदली वन में डाकुओं ने बसेरा बना कर कदली वन से गुजरने वाले को लूट कर मार देते थे. इस डाकूओं का सफाया करने के लिए रायचन्द्र और श्री धर के नेतृत्व में सेना भेजी और उन डाकूओं का समूल नाश किया गया. बाबा के राज्य में जादू टोना करने वाले से राज्य के लोग परेशान हो रहे थे और इसके दुष्प्रभाव से धर्म कार्य में बाधा आ रही थी .अपने राज्य के लोग को जादू-टोना करने वाले से मुक्ति दिलाने के लिए बाबा गणिनाथ जी ने गोविन्द जी को भेजा , गोविन्द जी जे अपने योग तपबल से इन सभी मायावी शक्तियों का नाश किया. पलवैया राज्य के बाहर यवनों का अत्याचार बढ़ रहा गया था, यवनों के अत्याचार के कारण लोगबाग अपने धर्म कार्य नहीं कर पा रहे थे.
  • इन यवनों से मुक्ति दिलाने के लिए बाबा गणिनाथ जी ने एक सेना तैयार की, इस सेना में लोगो का आहवाहन किया और ३६० जगह के लोग इस सेना में शामिल हुए(समाज के मूलडीह इन्ही ३६० जगहों के नाम पर आधारित है). इस सेना का नेतृत्व श्री रायचन्द्र और श्रीधर को सौपा और यवनों से लड़ने के लिए भेजा. बाबा कि सेना और यवनों में भयंकर युद्ध हुआ, और युद्ध के बीच में गोबिंद जी के भी आने से सेना में दुगना उत्साह बढ़ गया और यवन युद्ध हार गए. यवनों का सरदार बाबा गणिनाथ जी के तपबल और योगशक्ति से इतना प्रभावित हुआ कि जीवनपर्यंत उनका शिष्य बनकर उनकी सेवा करता रहा. बाबा गणिनाथ जी और माता क्षेमा के साथ गंगा में समाधी ली. और आज उस स्थान एक देव स्थान के रूप में पूजनीय स्थल है !